हिन्दू शब्द का अर्थ -
हिन्दू धर्म (Hindu Religion) में हिन्दू शब्द का अर्थ जानने के लिये भारत के इतिहास को जानना उतना ही आवश्यक है जितना की किसी बिमारी का इलाज करने के लिये उसकी जाॅंच आवश्यक होती है। चूॅकि हिन्दू शब्द भारत के किसी भी धर्म व भाषा का नही है इसलिये अध्ययन व रिसर्च से पता चलता है कि यह शब्द उर्दू डिक्शनरी , फारसी डिक्शनरी और अरबी डिक्शनरी में मिलता है जिसका अर्थ गुलाम, चोर, काला व लूटेरा (Slave, Thief, Black & Robber) आदि होता है। क्योंकि जब भारत में पश्चिम दिशा से मुसलिम आक्रमणकारी अरबी, तुर्की, फारसी आदि आये तब भारत में शूद्रों की स्थिति अच्छी नही थी। एक वर्ग विषेश ने यहाॅ के सीधे साधे लोगो पर अत्याचार करके उन्हे अपने अधीन कर लिया था और उनको मानसिक रूप से गुलाम बनाये रखने के लिये हिंदू धर्मग्रंथों की रचना की और उन्हे शिक्षा, रोजगार व सम्पत्ति से दूर रखा। जिनको मुसलिम आक्रमणकारीयों ने हिन्दू (Hindu) कहा।
हिन्दू र्धमग्रंथो में ’’हिन्दू’’ शब्द -
हिंदू धर्म ग्रंथों में मुख्य रूप से वाल्मीकि रामायण, भागवत गीता, वेद, पुराण, उपनिषद अन्य छोटे बड़े हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी हिंदू शब्द नहीं मिलता है इसका मुख्य कारण यह है कि यह शब्द विदेशी है और हिंदू धर्म के सभी धर्म ग्रंथ संस्कृत भाषा (Sanskrit Language) में लिखे गए, संस्कृत आर्यो की भाषा है। 08 वीं-09 वीं सदी के अन्त में देवनागरी लिपि (Devnagari Lipi) के अस्तित्व में आने के बाद आर्यो ने जब अपने धर्म ग्रन्थ लिखे तो वह संस्कृत भाषा में लिखे और इन धर्म ग्रंथों में मुख्य रूप से चार वर्णो का उल्लेख किया गया ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । इसलिये हिंदू धर्म ग्रंथों में इन्ही चार वर्णो का उल्लेख मिलता है हिन्दू शब्द का नहीं ।
सिन्धू से हिन्दू का सच -
बहुत सारे विद्वानो व इतिहासकारो द्वारा बताया जाता है कि अरब के आक्रमणकारी (invader) व इस्लामिक (islamic) लोग ’स’ को ’ह’ उच्चारित करते थे जिस कारण जब वह भारत आये तो उन लोगो ने सिन्धू नदी के किनारे बसने वाले भारतवासियों को हिन्दू (Hindu) कहकर उच्चारित करते थे। यदि यह कथन सत्य है तब यहॉ प्रश्न खडा होता है कि क्या उन्होने केवल सिन्धू को ही हिन्दू बोलकर उच्चारित किया या अन्य शब्दो व जगहो को भी ’स’ को ’ह’ उच्चारित किया था यदि किया था तो वह कौन से शब्द व जगह हैं ? और वह शब्द व जगह कहॉ चले गये ?
सुप्रीम कोर्ट ने कैसे की टिप्पणी
1992 से पेडिंग पड़े अभिराम सिंह मामले की पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने दलील दी कि बहुत से कैंडिडेट्स 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में चुनावी अनाचार मामले में बरी हो गए हैं लेकिन मेरे मुवक्किल अभिराम सिंह पर अभी कोई फैसला नहीं आया है क्योंकि याचिका को तीन जजों की पीठ में भेज दिया गया, फिर 05 जजों की पीठ और इसके बाद 07 जजों के बेंच को भेज दिया गया है, जिसे यह फैसला करना है कि कैंडिडेंट के धर्म, संप्रदाय, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना अयोग्यता की श्रेणी में आता है या नहीं ?
पूरा मामला क्या है ?
11 दिसंबर 1995 में जस्टिस जे. एस. वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है। हिंदुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व के इस्तेमाल को रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल ऐक्ट की धारा-123 के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं माना था। 1995 के इस फैसले में हिंदुत्व को जीवन शैली बताया गया था और कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार पर प्रतिकूल असर नहीं होता। 1995 के फैसले पर सवाल उठने के बाद यह मामला फिर जनवरी 2014 में पांच जजों की बेंच के सामने आया, जिसे 07 जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया था।
हिंदू धर्म के पण्डे-पुरोहित व शंकराचार्यों के मत -
हिंदू धर्म में इतने मतभेद हैं कि बडे से बडे पण्डे-पुरोहित व शंकराचार्य भी एक मत नही है क्योकि हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत ज्यादा विरोधाभाष है। कहीं राम के जन्म के लिये विवाद है तो कहीं कृष्ण के, कहीं हनुमान के तो कहीं विष्णु के, कहीं ब्रह्म के तो कही शिव के। किसी ग्रन्थ में 10 अवतार हैं तो किसी में 22, किसी में 06 अवतार हैं तो किसी में 12 अवतार हैं। हिंदू धर्म ग्रंथो में बहुत सारी बाते ऐसी हैं जो न तो आज समय के हिसाब से फिट होती हैं और न उस समय के हिसाब से फिट होती हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों (Hindu Religious Text) में इतना ज्यादा विरोधाभाष होने के कारण जब पण्डे-पुरोहित व शंकराचार्य आदि फसने लगते हैं तो वह शब्दों के अर्थ को तोड मरोड के पेश करते हैं।
क्या हिंदू एक समाज है ?
सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि हिंदू समाज एक मिथक (Myth) है ’हिंदू’ शब्द अपने आप में विदेशी नाम है यह नाम मुसलमानों ने यहाँ के निवासियों को अपनी पहचान के लिए दिया था मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने से पहले किसी भी संस्कृत के ग्रंथों से हिंदू शब्द नहीं मिलता है इसका एकमात्र कारण यह था कि उस समय के लोगों इस नाम की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि उस समय उनमें यह भाव ही नहीं था कि वह समान अधिकारों वाले समाज के अंग है इस प्रकार के हिंदुओं के समुदाय को एक संगठित समाज नहीं माना जा सकता वास्तव में देखा जाए तो यह ’जातियों का समूह’ मात्र है इसमें हर एक जाति केवल अपने ही अस्तित्व के प्रति सजग व सक्रिय रहती है और अपने अस्तित्व की रक्षा करना इसका एकमात्र व अंतिम लक्ष्य है।
जात-पांत का विनास – डॉ0 बी.आर.अम्बेडकर
(कपिल बौद्ध)
हिन्दू धर्म की वास्तविकता (Reality of Hindu Religion) Full PDF Download