Latest Post
बटेंगें तो कटेंगें (If you divide you will be divided)
परिचयः- ’’बटेंगें तो कटेंगें’’ ’’बटेंगें तो कटेंगें’’ ऐसी मानसिकता के लोग स्वार्थी होते हैं इनका आई क्यू (IQ) लेवल बहुत
बौद्ध धर्म का पतन (Decline of Buddhism)
बौद्ध धर्म का पतन परिचय – बौद्ध धम्म दुनिया के सभी मुख्य धर्मो में से एक है और बौद्ध धम्म
भारत में मुस्लिमों का योगदान (Contribution of Muslims in India)
भारत में मुस्लिमों का योगदान – मुस्लिमों द्वारा दिये गए मुख्य नारे व श्लोगन – ”अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नारा
बुद्धिज़्म (BUDDHISM)
बुद्धिज़्म (Buddhism) में शब्द व उनके अर्थ (भाव) – 1.धम्म – बुध (बुद्ध) द्वारा बताया गया सुखी जीवन जीने का
तर्कशील भारत (Rational India)
तर्कशील भारत के तर्क और उनके प्रश्न – 1. इतिहास के पन्नों में कहीं भी राक्षस, दैत्यों भूतों का उल्लेख
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति और आंदोलन क्यों?
परिचयः- अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति और आंदोलन क्यों? क्योंकि अंग्रेजों का भारत में आना और भारत पर 150 वर्षों तक
धम्मचक्र (Dhamma Chakra)
धम्मचक्र (Dhamma Chakra) का सम्बन्ध बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षा से है जो निरंतर जनमानस के कल्याण के लिए करबद्ध है बुद्धा की शिक्षाओं का मुख्य बिंदु “मानव कल्याण” (Human welfare) है मानव कल्याण के लिए बुद्धा ने सिद्धांत (Principle) बनाए थे जिन्हें पूरी दुनिया में त्रि शरण, चार आर्य सत्य, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग और 10 पारमिताओं के नाम से जाना जाता है जिनका पालन करने से मानव जीवन शत प्रतिशत सुखी होता है।
बुद्ध स्टैचू (Buddha Statue)
बुद्ध की स्टैचू ज्यादातर ध्यान की मुद्रा में होती है बुद्धा की पहली मूर्ति प्रथम शताब्दी में “बुद्धिष्ट राजा कनिष्क” के द्वारा मथुरा उत्तर प्रदेश (वर्तमान) में बनवाई गई थी क्योंकि बुद्ध की मूर्ति कल्पना के आधार पर बनाई गई थी और सबने बुद्धा को अपने हिसाब से बनाने का प्रयास किया है इसीलिए वर्तमान में विभिन्न जगहों पर भिन्न भिन्न प्रकार की अनेक मुद्राओ में बुद्ध की मूर्ति मिलती है।
बुद्ध की मुद्राएं (Posture of Buddha)
आशीर्वाद की मुद्रा बुद्ध की अन्य 12 अलग अलग मुद्राओ में से एक है बुद्ध की सबसे ज्यादा मूर्तियां ध्यान, ज्ञान और आशीर्वाद की मुद्रा में मिलती है इसके अलावा उत्तरबोधि, वितर्क, सेपना, धर्मचक्र, कर्ण, अभय, ज्ञान, ध्यान, नमस्कार, वरद्ध, तर्जनी व भूमि स्पर्श ये सब मुद्राएं डॉक्टर अंबेडकर (Dr. Ambedkar) मेमोरियल भवन 26 अलीपुर रोड, नई दिल्ली (New Delhi) में देखने को मिल जाती हैं।
Frequentaly Asked Question
पाली मे “धम्म चक्क” शाब्दिक अर्थ है “धम्म का पहिया” । धम्म चक्र का अर्थ तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक (Samrat Ashok) से भी है धम्म चक्र (Dhamma Chakra) दो शब्दों से मिलकर बना है धम्म और चक्र, धम्म का अर्थ होता है “बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग व चक्र का अर्थ होता है गतिशील होना”, अर्थात बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग हमेशा गतिशील रहना ही “धम्मचक्र” (dhamachakra) है इसको सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में 24 तिल्लियों वाला बनाया है । क्योकि एक दिन मे 24 घंटे होते है। जिससे की धम्म का कारवा 24 घंटे चलता रहे कभी रुके नही। 24 तीलियों के अलग – अलग अर्थ है। जो चित्र मे दिये गये है।
तथागत गौतम बुद्ध (Tathagat Gautam Buddha) ने निर्वांण प्राप्त करने के लिए अष्टांगिग मार्ग बताया है। लेकिन उन्होंने अष्टांगिक मार्ग को प्रदर्शित करने के लिए 08 डंडियों वाला कोई चक्र नही बनाया बल्कि यह कहा की जो कोई अष्टांगिक मार्ग का पालन हमेशा, यानी 24 घंटे करेगा तो वह हमेशा 24 घंटे जागरूक और निर्वांण के सुख को प्राप्त करेगा। इसी आधार पर महान सम्राट अशोक ने 24 तीलियों का “धम्मचक्र” बनाया था। लेकिन कुछ वर्तमान के विद्वानो ने अष्टांगिक मार्ग को प्रदर्शित करने के लिए आठ तीलियों वाला चक्र बना दिया। जिसे वह धम्म चक्र कहते है, और महान सम्राट अशोक के द्वारा बनाया गये “धम्मचक्र” को अशोक चक्र (Ashok Chakra) कहकर उसके अति महत्वपूर्ण महत्व को कम करते है।
बौद्ध धम्म (Bauddh Dhamma) में “धम्मचक्र” का विशेष महत्व है। यदि बौद्ध धम्म मे से धम्मचक्र (Dhamma Chakra) को हटा दिया जाये तो बौद्ध धम्म कुछ भी नही रहेगा। बौद्ध धम्म शून्य हो जायेगा। क्योकि बौद्ध धम्म की शुरुवात हि “धम्मचक्क प्रवर्तन” से होती है। तथागत गौतम बुद्ध ने सारनाथ (Sarnath) में जो प्रथम धम्मोपदेश दिया था उसे प्रथम “धम्मचक्र प्रवर्तन” भी कहा जाता है। 528 ईसा पूर्व मे तथागत गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) ने सारनाथ के इसीपतनम म्रगदावन मे ठहरे हुवे पांच परिव्राजाको को सभी दुखो से मुक्त होकर निर्वांण प्राप्त करने का मार्ग बताया था। इसी को “धम्मचक्र प्रवर्तन” कहते है।
क्योकी यही से धम्म चक्र गतिमान हुआ था तब से आज तक निरंतर पूरे संसार मे धम्म चक्र गतिमान है। बीच मे भारत देश मे थोड़ा सिथिल हो गया था लेकिन बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर (Dr. Ambedkar) ने 14 अक्टूबर 1956 को “धम्मचक्र” को फिर से गति दे दी। तब से यह भारत देश मे भी तेज गति से गतिमान हो गया है। जो कोई भी मानव तथागत गौतम बुद्ध द्वारा दिया गया प्रथम धम्मोपदेश को पड़ेगा और अपने जीवन मे उन उपदेशों का पालन करेगा यानी अनुसरण करेगा। वह दुनिया के सभी दुःखो से मुक्त होकर निर्वांण को प्राप्त करेगा। अन्यथा वह कभी भी अपने जीवन मे सभी दुःखो से मुक्त नही हो सकता। यही बौद्ध धम्म मे “धम्मचक्र” का महत्व है।
धम्मचक्र (Dhamma Chakra) की शिक्षाओं को दैनिक जीवन मे अभ्यास के माध्यम से शामिल किया जा सकता है। मानव यदि पंचशील (Panchsheel) का, अष्टांगिक मार्ग का एवं दस पार्मिताओ का निरंतर रोज – रोज थोड़ा थोड़ा पालन करेगा तो एक दिन वह इतना अभ्यासी हो जायेगा की वह बिना अभ्यास के ही स्वतः धम्मचक्र की शिक्षाओ का पालन करने लगेगा। जैसे एक छोटा बच्चा रोज – रोज निरंतर थोड़ा – थोड़ा खड़े होकर अपने पैरो से चलने का अभ्यास करता है। तो वह कई बार गिरता है, उठता है। कभी कभी उसे चोट भी आ जाती है। लेकिन फिर भी वह निरंतर अभ्यास करता रहता है। और आखिर कार वह दिन आ ही जाता है। जब वह बिना अभ्यास के चलने और दौड़ने लग जाता है।
1. सारनाथ (Sarnath) का अशोक स्तम्भ (Ashok Stambh) जिस पर चार शेरो के साथ ही साथ “धम्मचक्र” (Dhamma Chakra) भी बना हुआ है।
2. महान सम्राट अशोक (Samrat Ashok) के शिलालेखों पर भी “धम्मचक्र” बना हुआ है।
3. त्रीपिटक (Tripitak) साहित्य मे भी धम्म चक्र के बारे मे बताया गया है।
4. दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धम्म ग्रथ – “बुद्ध और उनका धम्म” (Buddha and His Dhamma) मे भी “धम्मचक्र” का जिक्र है।
अशोक चक्र (Ashok Chakra) की तीलियों मे पांच तीली पंचशील को प्रदर्शित करती है। आठ तीलिया अष्टांगिक मार्ग को प्रदर्शित करती है। दस तीलिया दस पार्मिताओ को प्रदर्शित करती है और चौबीस वी तीली प्रज्ञा पार्मित्ता को प्रदर्शित करती है।
पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, दस पार्मिताये, और प्रज्ञा पार्मिता जो सब पर लागू होती है। धम्म चक्र के यह चौबीस मूल सिद्धांत है।
पंचशील –
1.हिंसा नही करना (No Violence)
2. चोरी नही करना (Don’t Steal)
3. व्याभिचार नही करना (Do not commit adultery)
4. झूठ नही बोलना (Don’t Lie)
5. नशा नही करना (Not to drink)
अष्टांगिक मार्ग –
सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि।
(1) दान, (2) शील, (3) त्याग, (नेखम्म ), (4) करुणा, (5) वीर्य, (6) शान्ति, (7) सत्य, (8) अधिष्ठान, (9 ) मैत्री, (10) उपेक्षा
प्रज्ञा पारमिता यानी निर्मल बुद्धि जो सभी पर लागू होती है।