1857 क्रांति के प्रथम जनक ’’मातादीन वाल्मीकि’’ (The first father of 1857 revolution “Matadin Valmiki”)

1857 की क्रांति का नेतृत्व (Leadership of the revolution of 1857) -

1857 ki kranti

1857 की क्रांति (1857 revolution) की तिथि 31 मई 1857 रखी गई थी। 10 मई 1857 को मेरठ से सर्वप्रथम धन सिंह कोतवाल (गुर्जर) ने अंग्रेजो पर गोली चलाकर की थी। 1857 की क्रांति का नेतृत्व ’’बहादुर शाह जफर’’ ने किया था। दिल्ली से जनरल बख्त खान, कानपुर से नाना साहब, लखनऊ से बेगम हजरत महल, बरेली से खान बहादुर, बिहार से कुंवर सिंह और फैजाबाद से मौलवी अहमदुल्लाह आदि नेताओं ने लडाई में भागीदारी निभाई थी।

मातादीन वाल्मीकि का परिचय (Introduction of Matadin Valmiki) -

मातादीन वाल्मीकि का जन्म ब्रिटिश हुकूमत वाले मेरठ शहर के एक ’’भंगी परिवार’’ में हुआ था। शहीद मातादीन के पिता का नाम ’’जयनारायण’’ था, मातादीन के पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे। मगर वे नौकरी के सिलसिले में अंग्रेजों की तत्कालीन राजधानी ’कोलकाता’ (Kolkata) में बस गए थे। रोजी रोटी के लिए उनका परिवार यूपी के कई हिस्सों की खाक छान चुका था। उस समय की जाति व्यवस्था में भंगियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था इसलिए मातादीन कभी स्कूल नहीं जा पाए। उनका परिवार शुरू से ही अंग्रेजों के संपर्क में रहा, इसलिए मातादीन को अंग्रेंजों की सरकारी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत भी नहीं हुई। कलकत्ता से 16 किलोमिटर दूर स्थित ’’बैरकपुर छावनी’’ में उन्हें ’’खलासी’’ (मजदूर) की नौकरी मिल गई।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम की वास्तविक घटना (Actual incident of freedom struggle of 1857) -

12 दिसम्बर 1911 को भारत की राजधानी दिल्ली बनाया गया था इससे पहले अंग्रेजो की पहली राजधानी कोलकाता (कलकत्ता) हुआ करती थी। कलकत्ता से 16 किलोमिटर दूर स्थित बैरकपुर छावनी में अंग्रेजो की कारतूस बनाने की कम्पनी थी। इस छावनी में सिपाहियों के लिए कारतूस बनाए जाते थे। सेना में काम करते हुए मंगल पाण्डे और मातादीन की खासी पहचान हो चुकी थी। मंगल पाण्डे ये भी जान चुका था कि मातादीन भंगी जाति से है। एक दिन जब मातादीन को जोरो से प्यास लगी तो उन्होंने मंगल पाडेय से पानी पीने के लिए पानी का लोटा मांगा, तो मंगल पाडेय ने इसे मातादीन का दुस्साहस समझा और यह कहकर उन्हें पीने के लिए पानी नहीं दिया कि ‘अरे भंगी, मेरा लोटा छूकर तू मेरा धर्म भ्रश्ट करेगा और मेरे लोटे को अपवित्र करेगा क्या?

इस पर मातादीन वाल्मिकि ने मंगल पांडे को उनकी पंडाताई याद दिलाते हुए कहा, “पंडत, तुम्हारी पंडिताई उस समय कहा चली जाती है जब तुम और तुम्हारे जैसे चुटियाधारी गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूकों में भरते हो।“

ये सुनकर मंगल पांडे का माथा ठिनक गया। क्योंकि बात अब उनकी पंडताई पर आ गई थी। बात मंगल पांडे तक ही नहीं रूकी और एक के बाद एक सेना की सभी टुकड़ियों में इस बात के चर्चे होने लगे कि जिस कारतूस को वो मुंह से छीलते हैं, वो गाय और सूअर की चर्बी से बना हुआ है।

विद्रोह करने वाले पहले व्यक्ति थे मातादीन (Matadin was the first person to rebel) -

मातादीन भंगी 1857 की लड़ाई में मास्टरमाइंड थे ये बात अंग्रेजो ने मानी थी इसलिये उन्हे सर्वप्रथम फॉसी पर लटकाया था। इसका पुख्ता सबूत इस बात से पता चलता है कि 01 अप्रैल 1857 की घटना के बाद अंग्रेजो ने विद्रोह करने वालों की लिस्ट तैयार की जिसमें पहला नाम मातादीन वाल्मीकि (Matadin Valmiki) का था।


मातादीन वाल्मिकि ने सच्चे सिपाही की तरह अंग्रेजो के खिलाफ इस युद्ध को लड़ा था। हालांकि 1857 का ये युद्ध अंग्रेजी हुकुमत को जड़ से उखाड़ तो नहीं पाया लेकिन इस युद्ध ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े जरूर हिला दि थीं। वो उन शुरुआती लोगों में से थे जिन्होंने ‘1857 की क्रांति‘ (revolution of 1857) के विद्रोह का बीज बोया। 08 अप्रैल 1857 की घटना के बाद पूरे उत्तर भारत में विद्रोह की ज्वाला भड़क गई।

मंगल पाण्डे नही था 1857 की क्रांति का जनक (Mangal Pandey was not the father of 1857 revolution) -

battle of 1857

मंगल पाण्डे का विद्रोह करने की असली वजह गाय व सूअर की चर्बी (Cow and Pig Fat) से उसका र्धम भ्रश्ट करना था। मातादीन द्वारा मंगल पाण्डे को जब यह एहसास कराया की मानव मानव में भेद करने वाले तब तेरा ईमान धर्म कहॉ चला जाता है जब तुम गाय और सुअर की चर्बी से बना कारतूस (Cartridge) को अपने मुंह से खोलते हो। तब कही जाकर मंगल पाण्डे का माथा ठनका था। यदि मातादीन द्वारा मंगल पाण्डे को यह सब न बताया होता तो षायद मंगल पाण्डे को यह सब कभी पता ही नही चलता, और 01 अप्रैल 1857 की घटना कभी घटती ही नही और ना ही 08 अप्रैल 1857 को मातादीन व मंगल पाण्डे सहित अन्य को फॉसी की सजा होती ही नही।

मातादीन की गाय और सूअर की चर्बी वाली बात सुनकर मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। 01 अप्रैल 1857 की सुबह परेड मैदान में मंगल पाण्डे ने लाइन से बाहर निकल कर बंदूक तानकर अंग्रेज अधिकारियों को कहा कि “तुम गोरे लोग हमसे गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करवाकर हमारे धर्म और इमान के साथ खिलवाड़ कर रहे हो।” इसके बाद मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों को गोलियों से भूनना शूरू कर दिया।

मंगल पांडे को वास्तव में इस बात का डर था कि कहीं ये बात लोगो को पता चल गई कि मंगल पाण्डे ने गाय और सूअर की चर्बी लगा कारतूस का प्रयोग किया है तो उसे ब्राह्मण समाज से बहिसकृत कर दिया जायेगा और अछूतो की तरह जीना पडेगा।

मंगल पाण्डे ने लडी थी ’’धर्म’’ की लडाई (Mangal Pandey fought the battle of “Dharma”) -

मंगल पाण्डे (Mangal Pandey) को 29 मार्च 1857 को जब यह पता चला की जिस कारतूस का वह प्रयोग अपनी बंदूक (Gun)  में करता है वह गाय व सूअर की चर्बी की बनी है तब मंगल पांण्डे का खून खोल गया और अंग्रेज अफसर को गोली मार दी थी। मंगल पांण्डे ने क्यों गोली मारी क्योकि उसका धर्म भ्रश्ट हो गया था, धर्म भ्रश्ट कैसे हुआ, बैरकपुर छावनी में बन रहे गाय व सूअर की चर्बी से बने कारतूस से, कारतूस कहॉ बन रहा था, अंग्रेजो की बनाई कारतूस फैक्ट्री में। इसलिये मंगल पांण्डे ने अंग्रेज अफसर को गोली मारी थी। प्रष्न खडा होता है कि इस सब में मंगल पांण्डे ने आजादी की लडाई कहॉ लडी, वास्तव में उसने तो धर्म की लडाई थी जिसको इतिहासकारों ने बडी चालाकी और चतुराई के साथ मंगल पांण्डे को 1857 की क्रांति का जनक लिखा।

दलितों के लिए ये लड़ाई उनके जल, जंगल और जमीन की लड़ाई थी जब्कि मंगल पाण्डे का विरोध उस व्यवस्था को लेकर था जिससे उनके धर्म पर आंच आ रही थी। ये उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली बात थी। ये ब्राह्मणवादी नियमों को खतरें में डालता था। मंगल पांडे एक ब्राह्मण थे और गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूसों को मुंह से काटने का मतलब था उनका ब्राह्मण से अछूत हो जाना। क्योंकि जब किसी को ये पता चलता कि मंगल पांडे ने गाय और सूअर की चर्बी को मुंह लगाया है तो न तो कोई उनके साथ “खाना खाता, ना उन्हे छूता और शायद मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी नहीं करता।” मंगल को यही डर था जब ये बात सभी में फैल जाएगी तो उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाएगा।

                                                                             (कपिल बौद्ध)

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