बुद्धिज़्म (Buddhism) में शब्द व उनके अर्थ (भाव) -
1.धम्म – बुध (बुद्ध) द्वारा बताया गया सुखी जीवन जीने का मार्ग (बुद्धिज़्म) ही धम्म कहलाता है। जिसके अंतर्गत चार आर्य सत्य, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, व दस पारमितायें।
2.धम्मचक्र – धम्मचक्र (धम्मचक्क) अर्थात् धम्म का पहिया। धम्म को गतिशील रखना ही धम्मचक्र है पाली मे “धम्म चक्क” का शाब्दिक अर्थ है “धम्म का पहिया” । धम्म चक्र का अर्थ तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक (Samrat Ashok) से भी है धम्म चक्र (Dhamma Chakra) दो शब्दों से मिलकर बना है धम्म और चक्र, धम्म का अर्थ होता है “बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग व चक्र का अर्थ होता है गतिशील होना”, अर्थात बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग हमेशा गतिशील रहना ही “धम्मचक्र” (Dhamachakra) है इसको सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में 24 तिल्लियों वाला बनाया है । क्योकि एक दिन मे 24 घंटे होते है। जिससे की धम्म का कारवा 24 घंटे चलता रहे कभी रुके नही। जिसे प्रतिक के रूप में सम्राट असोक ने चक्र अर्थात् पहिये के रूप में अपने राज्य के प्रत्येक दिषा व स्थान में बनवया था।
3.धम्म चक्र प्रवर्तन – धम्म चक्र प्रवर्तन (धम्म चक्क पवत्तन) का आषय उस दिन से हैं जब तथागत गौतम बुध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सबसे पहले अपने पाॅच परिव्राजको (कोण्डिन्य, अस्सजि, वप्प, महानाम, भदिय) को सारनाथ के इसीपतनम मृगदावन में अपना प्रथम धम्म उपदेष दिया था। इस प्रथम धम्म उपदेष दिवस को ही धम्मचक्र परिवर्तन कहते हैं।
4.भिक्खु – घर, सम्पत्ति व परिवार आदि छोडकर, बुध के द्वारा बताये मार्ग पर चलने वाला, धम्म का प्रचार प्रसार करने वाला जो कास्य या केसरिया (भगवा) रंग के वस्त्र धारण करने वाला साधू।
5.महाभिनिश्क्रमण – बौध धम्म में गृहत्याग की घटना को ”महाभिनिश्क्रमण” कहते हैं।
6.धम्मचक्रप्रर्वतन – बौध धम्म में पहले प्रवचन की घटना को ”धम्मचक्रप्रर्वतन” कहते हैं।
7.महापरिनिर्वाण – बौध धम्म में शरीर त्यागने की घटना को ”महापरिनिर्वाण” (महापरिनिब्बान) कहते हैं। यह शब्द केवल ”बुध” के लिये प्रयोग किया जाता है।
8.परिनिर्वाण – जब कोई व्यक्ति आम जनमानस से उपर होता है जो लोकहित समाजहित, कल्याणकारी होता है ऐसे व्यक्ति को मरणोपरान्त परिनिर्वाण प्राप्त व्यक्ति कहा जाता है।
9.निर्वाण (निब्बान)– जब कोई व्यक्ति उच्च स्तर का ज्ञान प्राप्त कर सभी दुःखो से रहित, शान्त चित्त मन का, ऐसी स्थिति को निर्वाण कहते हैं। निर्वाण को जीवित अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है।
10.प्रज्ञा – प्रज्ञा का अर्थ निर्मल बुद्धि।
बौद्ध संस्कृति में मुख्य शब्द व उनके अर्थ -
11.सील – नैतिक स्वभाव, अकुषल कर्म न करना।
12.करूणा – करूणा का अर्थ प्रेम, दयावान।
13.स्तूप – बौद्ध भिक्षुओं की अस्थियों को रखकर बनाया गया स्मारक। स्तूप भिन्न-भिन्न प्रकार, आकार जैसे गोल पत्थर, गोलाकार, चकोर, गुम्बदनुमा, आयताकार, वर्गाकार, छोटे-बडे आदि होते हैं।
14. चैत्य – बोधिसत्व की अस्थियों को रखकर बनाया गया स्मारक।
15. विहार – बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान।
16. तथागत – जिसे तथ्य की, सत्य की बोधि प्राप्त हो गई हो। क्योकि यह केवल बुध को प्राप्त हुई थी इसलिये इस षब्द का प्रयोग केवल बुध के लिये किया जाता है।
17. बोधिसत्व – जिसे बोधि (योग्य) ज्ञान प्राप्त हो। उच्च स्तर का ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति, जिसमें बाबा साहब डाॅ0 बी0आर0 अम्बेडकर हैं इसलिये उनके नाम के साथ बोधिसत्व का प्रयोग किया जाता है।
18. सम्मा सम्बोधि – सम्यक ज्ञाान (जाग्रत मन का निर्माण)। जब चित्त एकाग्र, निर्मल, दोशरहित, दूशणरहित, ग्रहणषील, दक्ष, स्थिर भावनारहित हो गया हो।
19. अर्हत – निष्पाप, निष्कलंक। जो लालच, द्वेश, क्रोध, मोह-माया आदि से विरत हो।
20. श्रामणेर – 20 वर्ष पूर्व प्रवज्जया ग्रहण करने वाला।
21. स्थविर (थेर) – 10 वर्ष का जिस भिक्खु ने कार्यकाल पूरा कर लिया हो।
22. महास्थविर – 20 वर्ष का जिस भिक्खु ने कार्यकाल पूरा कर लिया हो।
23. सम्यकजीवी – बाबा साहब के अनुसार भिक्खु की भांति जीवन यापन, धम्म प्रचारक का कार्य करने वाला।
24. परिव्राजक – गृहत्याग करना।
25. उपसंपदा – भिक्खु संघ में प्रवेश मिलना।
26. परित्राण – संरक्षण।
27. उपोसथ – पवित्र दिन।
28. संथागार – लोगों के बैठने का स्थान।
29. अनागरिक – सादे कपड़े का भिक्खु।
30. सम्यक – उचित, उपयुक्त।
31. पब्बज्जा (प्रव्रज्या) – साधू रूप में घर, सम्पत्ति व परिवार आदि छोडकर देष छोडना।
32. समाधि – मन को एकाग्र (एक) करना, उसकी जागरूकता को किसी खास चीज पर केद्रित करना।
33. बोधिवृक्ष – पीपल का वह वृक्ष जिसके जिसके नीचे बैठ कर सिद्वार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्त किया था।
34. नैतिकता – धम्म में सबसे बडा स्थान नैतिकता को दिया गया है अर्थात् नैतिकता ही धम्म है और धम्म ही नैतिकता है।
35. दान पारमिता – सबसे श्रेश्ठ दान धम्म का दान होता है।
36. त्रिशरण – त्रिशरण अर्थात् त्रिरत्न (तीन रत्न) – बुध, धम्म, व संघ।
37. सब्बे सत्ता – संसार की समस्त मानव जाति के लिये मंगलकामनायें।
त्रिपिटक (तिपिटक)
38. त्रिपिटक (तिपिटक) – बौध धम्म की तीन पेटी (तीन पिटारे) पुस्तक,
1- सुत्तपिटक – इसका संगायन स्थविर आनन्द ने किया था।
2- विनयपिटक – इसका संगायन विनयधर उपालि ने किया था।
3- अभिधम्मपिटक – इसका संगायन महास्थविर कश्यप ने किया था।
चार आर्य सत्य -
39. चार आर्य सत्य –
1- दुःख-संसार में दुःख है,
2- समुदय-दुःख के कारण हैं,
3- निरोध-दुःख के निवारण हैं,
4- मार्ग-दुःख के निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग है।
पंचशील (Panchsheel) -
40. पंचशील –
1. हिंसा न करना,
2. चोरी न करना,
3. व्यभिचार न करना,
4. झूठ न बोलना,
5. नशा न करना।
अष्टांगिक मार्ग -
41. अष्टांगिक मार्ग –
1. सम्यक दृष्टि: चार आर्य सत्य में विश्वास करना।
2. सम्यक संकल्प: मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना।
3. सम्यक वाक: हानिकारक बातें और झूठ न बोलना।
4. सम्यक कर्म: हानिकारक कर्म न करना।
5. सम्यक जीविका: कोई भी अस्पष्ट या हानिकारक व्यापार न करना।
6. सम्यक प्रयास: अपने आप सुधरने की कोशिश करना।
7. सम्यक स्मृति: स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना।
8. सम्यक समाधि: निर्वाण पाना और अहंकार का खोना।
पारमिताएं -
42. पारमिताएं –
यदि कोई व्यक्ति ईसाई न हो तो वह पोप नहीं बन सकता, मुसलमान न हो तो पैगंबर नहीं बन सकता, हर हिंदू शंकराचार्य नहीं बन सकता, लेकिन हर मनुष्य बुद्ध बन सकता है। बौद्ध धर्म में बुद्ध बनने के उपाय बताए गए हैं।
जब कोई व्यक्ति ‘दान’ पारमिता को आरंभ करता हुआ ‘उपेक्षा’ की पूर्ति तक पहुंचता है, तब तक वह बोधिसत्व रहता है. लेकिन इन सबको पूरा करने के बाद वह बुद्ध बन जाता है। पारमिताएं नैतिक मूल्य होती हैं, जिनका अनुशीलन बुद्धत्व की ओर ले जाता है।
बौद्ध धर्म की मान्यता है कि बुद्ध बनने की इच्छा रखने वाले को दस पारमिताएं पूरी करनी पड़ती हैं. ये पारमिताएं हैं। दान, शील, नैष्क्रम्य, प्रज्ञा, वीर्य, शांति, सत्य, अधिष्ठान, मैत्री और उपेक्षा।
(कपिल बौद्ध)
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