धम्मचक्र (Dhamma Chakra)

धम्मचक्र का अर्थ -

dhamma chakra

पाली मे ’’धम्म चक्क’’ का शाब्दिक अर्थ है “धम्म का पहिया”। धम्मचक्र का सम्बन्ध तथागत बुद्ध (Tathagat Buddha) और सम्राट अशोक (Samrat Ashok) से है। धम्म चक्र (Dhamma Chakra) दो शब्दों से मिलकर बना है धम्म और चक्र, धम्म का अर्थ होता है “बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग” व चक्र का अर्थ होता है “गतिशील होना”, अर्थात बुद्धा द्वारा बताया गया मार्ग हमेशा गतिशील रहना ही ’’धम्म चक्र’’ है इसको सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों (Inscriptions) में 24 डंडियों वाला बनाया है क्योकि एक दिन मे 24 घंटे होते है। जिसको सम्राट अशोक ने अपने शिलाओं में धम्म का पहिया 24 घंटे गतिशील रहना ही “धम्म चक्र” है अर्थात् धम्म का कारवा 24 घंटे चलता रहे कभी रुके नही। धम्म के पहिये में 24 तीलियों धम्म की 24 अलग-अलग शिक्षाओं को बताती है।

धम्मचक्र की शुरूआत -

आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बुद्ध के समय में शाक्यों और कोलियों के बीच रोहिणी नदी (Rohini River) के जल के बटवारें को लेकर दोनो पक्षो के मध्य विवाद खडा हो गया, विवाद इतना बढ गया कि युद्ध स्तर तक की नौबत आ गई। किन्तु बुद्ध युद्ध (War) को टालने के लिये अडे रहे, इसी हट के कारण राज्य के मंत्रीमण्डल ने उनको देश निकाला की सजा दी, जिसको बुद्ध ने स्वीकार करते हुए सम्पूर्ण परिवार से व पूरे राज्य के निवासीयों से अज्ञा लेकर बौद्ध गया की ओर निकल पडे। इस यात्रा के दौरान उन्होने देखा की संसार में दुःख ही दुःख है, इसी दुःख का निवारण हेतु उन्होने पीपल वृक्ष (बौद्धिवृक्ष) के नीचे 06 वर्षों तक तप (Tapasya) करने के पश्चात, ज्ञान प्राप्त करने पर वह सिद्धार्थ गौतम से “बुद्ध” (Buddha)  कहलाये। ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात वह बहुत समय तक भटकते रहे, फिर उन्हे अपने तप करने के समय के पॉच लोगो को खोजा जो उन्हे छोडकर चले आये थे। वह पॉच लोग उन्हे सारनाथ (Sarnaath) में मिले। सावन माह की पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध ने उन्हे चार आर्य सत्य, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग और 10 पारमिताओं का सप्पूर्ण ज्ञान दिया इसी दिन को बौद्ध धम्म में “धम्मचक्क परिवर्तन दिवस” (गुरू पूर्णिमा) के नाम से जाना जाता है।
(बुद्ध और उनका धम्म – डॉ0 भीमराव अम्बेडकर)

बौद्ध धम्म में नैतिकता का महत्व -

Dhammachakra

बुद्धिज़्म में सबसे अधिक महत्वता नैतिकता को दी जाति है क्योकि “नैतिकता ही धम्म है और धम्म ही नैतिकता है”। इस सम्बन्ध में अधिक व उचित जानकारी के लिये बाबा साहब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर (Baba Shaheb Dr. Ambedkar) द्वारा लिखित बुद्धिस्ट धम्म ग्रंथ ’’बुद्ध और उनका धम्म’’ (Buddha and His Dhamma) में मिलती है।

बौद्ध धम्म में धम्म चक्र का महत्व -

बौद्ध धम्म में धम्म चक्र (dhama chakra) का विशेष महत्व है यदि बौद्ध धम्म में से “धम्म चक्र” को हटा दिया जाये तो बौद्ध धम्म को समझने और उसकी शिक्षाओं को अपनाने में तथा बुद्धिज़्म (Buddhism) को प्रदर्षित करने में अत्यधिक कठिनाईयों का सामना करना पड सकता है। क्योकि बौद्ध धम्म की शुरुवात ही “धम्म चक्क प्रवर्तन” (Dhamma Chakra Pravartan) से होती है। तथागत गौतम बुद्ध ने सारनाथ (Sarnaath)  में जो प्रथम धम्मोपदेश दिया था उसे प्रथम “धम्म चक्र प्रवर्तन” भी कहा जाता है। 528 ईसा पूर्व मे तथागत गौतम बुद्ध ने सारनाथ के “इसीपतनम म्रगदावन ” मे ठहरे हुवे पांच परिव्राजाको को सभी दुखो से मुक्त होकर निर्वांण (Nirvana) प्राप्त करने का मार्ग बताया था। इसी को “धम्म चक्र प्रवर्तन” कहते है। क्योकी यही से “धम्म चक्र” गतिमान हुआ था । तब से आज तक निरंतर पूरे संसार (world) मे “धम्म चक्र गतिमान” है। बीच मे भारत देश मे थोड़ा सिथिल हो गया था लेकिन बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को “धम्म चक्र” (Dhamma Chakra) को फिर से गति दी। तब से यह भारत (India)) देश मे भी तेज गति से गतिमान हो गया है। जो कोई भी मानव तथागत गौतम बुद्ध द्वारा दिया गया प्रथम धम्मोपदेश को पढ़ेगा और अपने जीवन मे उन उपदेशों का पालन करेगा यानी अनुसरण करेगा, वह दुनिया के सभी दुःखो से मुक्त (free from sorrow) होकर निर्वांण (Nirvana)  को प्राप्त करेगा। अन्यथा वह कभी भी अपने जीवन मे सभी दुःखो से मुक्त नही हो सकता। यही बौद्ध धम्म मे धम्म चक्र का महत्व है।

क्या धम्मचक्र के बारे मे कोई प्रसिद्ध ऐतिहासिक संदर्भ है ?

ashok stambh

1.सारनाथ का अशोक स्तम्भ जिस पर चार शेरो के साथ ही साथ “धम्म चक्र” (Dhamma Chakra) भी बना हुआ है।
2.महान सम्राट अशोक के शिला लेखों पर भी “धम्मचक्र” (Dhamma Chakra) बना हुआ है।
3.“त्रीपिटक” साहित्य मे भी “धम्मचक्र” के बारे मे बताया गया है।
4.दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धम्म ग्रंथ ’’बुद्ध और उनका धम्म’’ (Buddha and his dhamma) में भी “धम्मचक्र” का जिक्र मिलता है।
5.भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महान सम्राट असोक द्वारा निर्मित असोका स्तम्भ (Ashoka Pillar) , चारो दिशाओं की ओर मुॅह वाले सिंह, व चक्र, अलग-अलग व एक साथ पाये गये अवषेशों को संग्रालय में देखा जा सकता है।

धम्म चक्र के मूल सिद्धांत क्या है ?

पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, दस पार्मिताये, और प्रज्ञा पार्मिता जो सब पर लागू होती है। धम्म चक्र के यह चौबीस (Twenty Four) मूल सिद्धांत है – 
पंचशील (Panchsheel) –
1- हिंसा नही करना (No Violence)
2- चोरी नही करना (Don’t Steal)
3- व्याभिचार नही करना (Do Not Commit Adultery)
4- झूठ नही बोलना (Don’t Lie)
5- नशा नही करना (Not to Drink)
अष्टांगिक मार्ग (The Eightfold Path) –
सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।
(1) दान, (2) सील, (3) त्याग, (नेक्खम्म), (4) प्रज्ञा, (5) वीर्य, (6) खन्ति, (क्षान्ति) (7) सत्य, (8) अधिष्ठान, (9) मैत्री (10) उपेक्षा 

                                                                     (कपिल बौद्ध)

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