अम्बेडकरवाद बनाम ब्राह्मणवाद (Ambedkarism vs Brahminism)

अम्बेडकरवाद बनाम ब्राह्मणवाद (Ambedkarism and Brahmanism) दो विचारो का टकराव है जिसमें अम्बेडकरवाद की विचारधारा न्याय, बंधुता, समानता, एवं स्वतंत्रता पर आधारित है जो मानवतावाद एवं वैज्ञानिकवाद को बढावा देती है वही दूसरी विचारधारा न्याय, बंधुता, समानता, एवं स्वतंत्रता के विरूद्ध है जो मानवतावाद एवं वैज्ञानिकवाद को बढावा नही देती। अम्बेडकरवाद की विचारधारा पोशक है तो वही ब्राह्मणवाद की विचारधारा शोषक है।

अम्बेडकरवाद बनाम ब्राह्मणवाद

अम्बेडकरवाद क्या है?

अम्बेडकरवाद सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक एवं धार्मिक क्रांति है। अम्बेडकरवाद का मतलब मानवतावाद, वैज्ञानिकवाद है। बिना अम्बेडकरवाद के मानवतावाद एवं वैज्ञानिकवाद की कल्पना भी नही की जा सकती, क्योकि अम्बेडकरवाद केवल ”वाद” नही है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन जिने की कला है। अम्बेडकरवाद सभी दुःखो का निवारण है। बिना अम्बेडकरवादी बने संसार मे कोई भी व्यक्ति दुःख से मुक्त नही हो सकता है। संसार मे जो कोई व्यक्ति अपने दुःखो से मुक्त होना चाहता है उसे अम्बेडकरवादी जरूर बनना पड़ेगा। अम्बेडकरवाद का मतलब आदर्श समाज का निर्माण करना भी है। जो कोई अम्बेडकरवादी होता है जो अम्बेडकरवादी समाज होती है वह दुनियाँ की आदर्श समाज होती है। क्योकि अम्बेडकरवाद के मूल तत्व समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं न्याय है। और जिस समाज मे यह मूल तत्व होते है वह दुनियाँ की आदर्श समाज होती है। दुनियाँ के किसी भी वाद या धर्म में यह अम्बेडकरवादी मूलतत्व नही है, इसलिए संसार की कोई भी समाज बिना अम्बेडकरवाद के आदर्श नही बन सकती।

अम्बेडकरवाद का जन्म कैसे हुआ?

किसी भी घटना को घटित होने के लिये वजह की आवश्यकता होती है इसलिये अम्बेडकरवाद का जन्म भी बहुत सारे कारणो से हुआ है जिनमें से एक कारण है ”बाह्मणवाद” (Brahminism)। बाह्मणवाद वह नासूर है जो भारत के इतिहास में भारत को वर्षो से या यूॅ कहें की लगभग  तीन हजार (3000) वर्षो से भारत को खोखला करने का काम कर रहा है।

आंबेडकरवाद का जन्म कैसे हुआ इसको समझने के लिए आपको सबसे पहले बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन संघर्ष को पढ़ना अति आवश्यक है जो कि अंबेडकरवाद को समझने के लिए अपने आप में कुशल व पूर्ण है इसके अलावा डॉ अम्बेडकर द्वारा लिखी गई तीन पुस्तक नंबर एक “बुद्ध और उनका धम्म“ नम्बर दो “बुद्ध और काल मार्क्स“ नंबर तीन “भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति“, इन तीन किताबों को पढ़ने के बाद आपको यह स्पष्ट होगा कि आंबेडकरवाद क्या है आंबेडकरवाद ने क्यों जन्म लिया और अंबेडकरवाद की क्या महत्त्वता है। डॉक्टर अंबेडकर कहते हैं कि भारत का इतिहास बुद्ध की क्रान्ति और प्रतिक्रांति का संघर्ष रहा है इसके पुख्ता सबूत आपको डॉक्टर अंबेडकर द्वारा लिखित किताब “भारत की क्रान्ति और प्रतिक्रांति“ में देखने को मिलेंगे आंबेडकरवाद को समझने के लिए आपको ब्राह्मणवाद भी समझना होगा ब्राह्मणवाद को समझने के बाद ही आप अंबेडकरवाद को बेहतर समझ पाएंगे।

अंबेडकरवाद का जन्म डॉक्टर अंबेडकर के जन्म से हैं पूरी दुनिया उनके त्याग व संघर्ष को जानती व समझती है डॉक्टर अंबेडकर ने बचपन से ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, न्याय, समानता, बंधुता आदि के लिए संघर्ष किया है और संघर्ष करते हुए देखा था इसलिए उन्होंने अपने आप को समाज के लिए समर्पित किया और भारत में जितनी भी दलित, शोषित, पिछड़े वर्ग (Dalit, Oppressed, Backward class) हैं उनकी आवाज बने, न केवल आवाज बनें उनके लिए मिसाल बने।

अम्बेडकरवाद का महत्त्व

यदि ब्राह्मणवाद और भारत के शोषित पिछड़े दलित वर्ग के बीच में यदि कोई खड़ा है तो वह ”आंबेडकरवाद” (Ambedkarism) है और यह इतना मजबूत है की लगातार लगभग पिछले 100 सालों से ब्राह्मणवाद, अंबेडकर व आंबेडकरवाद को गिराने व तोड़ने का प्रयास करता आ रहा है किंतु अंबेडकरवाद को ब्राह्मणवाद जितना तोड़ने व गिराने का प्रयास करता है आंबेडकरवाद उतना ही मजबूत होकर ज्यों का त्यों खड़ा रहता है और पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूत खड़ा होता है। इसीलिए बाबा साहब डॉ अंबेडकर के नाम के पूरे भारत में लाखों संगठन है जो अंबेडकरवाद को जिंदा रखते हैं और डॉक्टर अंबेडकर के नाम पर समाज में एकता, समानता, न्याय, बंधुता, शिक्षा, रोजगार, सम्पत्ति आदि के लिए संघर्ष करते हैं।

ब्राह्मणवाद क्या है?

अम्बेडकरवाद बनाम ब्राह्मणवाद

ब्राह्मणवाद खोखले विचारों की एक परिकल्पना है जिसमे ऐसा समाज रहता है जो एक को नीचा और दूसरों को ऊँचा समझता है और न केवल समझता है अपने धर्म ग्रंथों में यह लिख कर रखा है कि जो नीचा है वो नीचा सदा रहे वो न्याय की मांग की उम्मीद न करें, वो शिक्षा की उम्मीद न करें, वो रोजगार की उम्मीद न करें, वो संपत्ति की उम्मीद न करें, वह बंधुत्व की उम्मीद न करें, वह समानता की उम्मीद न करें।

भारत में ब्राह्मणवाद (Brahmanism) की जड़ें इतनी मजबूत है की आजादी के लगभग 75 वर्ष बाद भी भारत में अलग अलग राज्यों में आज भी भारत के संविधान की प्रस्तावना जो कि न्याय, बंधुता अखंडता, एकता, समानता पर टिक्की है उस को चुनौती देती है। भारत के राजनीतिक कल्चर में ब्राह्मणवाद और दलित शोषित पिछड़े के बीच में यदि कोई खड़ा है तो वह भारत का संविधान है जिसे बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने कड़ी लगन और मेहनत के बावजूद बनाया था।

ब्राह्मणवाद भारत के संविधान को रोजाना कमजोर करने का प्रयास करता है वह जानता है कि उनके और शोषित समाज के बीच यदि कोई खड़ा है तो वह ”आंबेडकरवाद” और अंबेडकर का लिखा हुआ है ”संविधान” (Constitution) है। ब्राह्मणवाद अशिक्षा का पोषक है, बेरोजगारी का पोषक है, असमानता का पोषक है, अन्याय का पोषक है, नफरत का पोषक है, ऊँच नीच का पोषक है, लिंग भेद का पोषक है। यदि ब्राह्मणवाद आपको अच्छे से समझना है तो भारत में भारत के इतिहास को अच्छे से समझना होगा तथा इनके द्वारा लिखे गए धर्मग्रंथों को वैज्ञानिक, तार्किक दृष्टिकोण से पढ़ना होगा, तब आपको यह ज्ञात होगा की असली ब्राह्मणवाद क्या है।

जय भीम क्या है?

1. जय भीम कोई चुनाव या राजनैतिक नारा नही है। न ही किसी व्यक्ति, समूह या क्षेत्र का एकाधिकार है।
 
2. जय भीम प्रण है कि हम संविधान की रक्षा करेंगे।
 
3. जय भीम एक अपील है शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो की।
 
4. जय भीम एक वादा है पे बैक टू सोसायटी का
 
5. जय भीम एक वादा है भारत की एकता के लिये मर मिटने का
 
6. जय भीम एक क्रान्ति है असमानता, लिंग भेद, अंधविश्वास के खिलाफ
 
7. जय भीम एक भावना है निर्भीकता की।
 
8. जय भीम एक परंपरा है स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता की।
 
9. जय भीम एक उत्तरदायित्व है बुद्ध, अशोक, कबीर, ज्योतिबा, सावित्रीबाई और बाबासाहब के विचारों का।
 
10. जय भीम एक योजना है व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और दुनिया मे लोकतंत्र, नैतिकता, विज्ञान, शान्ति और विकास के लिए।
 
 
अम्बेडकरवाद का मतलब ही बुद्धिष्ट भी है। यदि कोई यह कहता है, की मै अम्बेडकरवादी तो हूँ लेकिन बुद्धिष्ट नही हूँ। तो वह सफेद झूठ बोल रहा है। वह कोई अम्बेडकरवादी नही है। केवल अज्ञानी जनता को गुमराह करने का काम कर रहा है। वास्तव मे बिना अम्बेडकरवादी बने कोई भी व्यक्ति बुद्धिष्ट नही बन सकता और बिना बुद्धिष्ट बने कोई भी व्यक्ति अम्बेडकरवादी नही बन सकता। अम्बेडकरवाद और बुद्धिज्म एक सिक्के के दो पहलू है। जिस प्रकार सिक्के के लिए दो पहलुओं का महत्व है। उसी प्रकार आपस मे अम्बेडकरवाद और बुद्धिज्म का महत्व है। जैसे सिक्के के दो पहलुओं मे से किसी को भी अलग नही किया जा सकता उसी प्रकार अम्बेडकरवाद और बुद्धिज्म को भी अलग नही किया जा सकता। संसार के लोग जितनी जल्दी अम्बेडकरवादी बनेगे उतनी ही जल्दी उनका कल्याण होगा। 
                                                                      (कपिल बौद्ध)

अम्बेडकरवाद व ब्राह्मणवाद Full PDF Download

Share
Scroll to Top